मेरे शहर में अब शोर नही होताअब बच्चे गलियों में खेला नही करते
अब घरों के शीशे टूटा नही करते
पहले आती थीं माओं की डाँटने की आवाज़पर अब ऐसा किसी ओर नही होतामेरे शहर में अब शोर नही होता
अब नुक्कड़ पे मोहल्ले के लड़के नही आते
अब छतों पे सूखे हुए दुपट्टे नही लहराते
पहले गूँजती थी नज़रों की गुफ्तगू चार सु
पर अब ऐसा मन किशोर नही होतामेरे शहर में अब शोर नही होता
अब बाज़ारों में खरीद खरीदार नही आया करते
अब द्वार पे बड़े बुजुर्ग नही बतियाया करते
पहले लगते थे खूब दीवाली दशहरे पे मेले
पर अब ऐसा किसी छोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता
अब बारिशें दीवारों के रंग नही बहा ले जातीं
अब हवाएँ पत्तों के संग नही मुस्कुरातीं
पहले चहकती थी सावन के झूलों पे किल्कारियाँ
पर अब ऐसा किसी भोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता
अब बस मिट्टी में घुलती बू सूँघाई देती है
अब बस अधमरी इमारतों की चीखें सुनाई देती हैं
पहले थे कई रंग ओर बातें मेरे शहर की मशहूर
पर अब बस एक किस्सा चारों ओर होता है
मेरे शहर का सन्नाटा शोर होता है
अब घरों के शीशे टूटा नही करते
पहले आती थीं माओं की डाँटने की आवाज़पर अब ऐसा किसी ओर नही होतामेरे शहर में अब शोर नही होता
अब नुक्कड़ पे मोहल्ले के लड़के नही आते
अब छतों पे सूखे हुए दुपट्टे नही लहराते
पहले गूँजती थी नज़रों की गुफ्तगू चार सु
पर अब ऐसा मन किशोर नही होतामेरे शहर में अब शोर नही होता
अब बाज़ारों में खरीद खरीदार नही आया करते
अब द्वार पे बड़े बुजुर्ग नही बतियाया करते
पहले लगते थे खूब दीवाली दशहरे पे मेले
पर अब ऐसा किसी छोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता
अब बारिशें दीवारों के रंग नही बहा ले जातीं
अब हवाएँ पत्तों के संग नही मुस्कुरातीं
पहले चहकती थी सावन के झूलों पे किल्कारियाँ
पर अब ऐसा किसी भोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता
अब बस मिट्टी में घुलती बू सूँघाई देती है
अब बस अधमरी इमारतों की चीखें सुनाई देती हैं
पहले थे कई रंग ओर बातें मेरे शहर की मशहूर
पर अब बस एक किस्सा चारों ओर होता है
मेरे शहर का सन्नाटा शोर होता है